Go To Mantra

अ॒भि त्वा॑ शूर नोनु॒मोऽदु॑ग्धा इव धे॒नवः॑। ईशा॑नम॒स्य जग॑तः स्व॒र्दृश॒मीशा॑नमिन्द्र त॒स्थुषः॑ ॥

Mantra Audio
Pad Path

अभि । त्वा । शूर । नोनुम: । अदुग्धा:ऽइव । धेनव: ॥ ईशानम् । अस्य । जगत: । स्व:ऽदृशम् । ईशानम् । इन्द्र । तस्थुष: ॥१२१.१॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:121» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (शूर) हे शूर (इन्द्र) इन्द्र ! [परमेश्वर] (अदुग्धाः) बिना दुही (धेनवः इव) दुधेल गौओं के समान [झुककर] हम (अस्य) इस (जगतः) जङ्गम के (ईशानम्) स्वामी और (तस्थुषः) स्थावर के (ईशानम्) स्वामी, और (स्वर्दृशम्) सुख के दिखानेवाले (त्वा) तुझको (अभि) सब ओर से (नोनुमः) अत्यन्त सराहते हैं ॥१॥
Connotation: - जैसे दूध से भरी गौएँ दूध देने के लिये झुक जाती हैं, वैसे ही मनुष्य विद्या आदि शुभ गुणों से भरपूर होकर परमेश्वर की महिमा देखते हुए नम्र होकर संसार में उपकार करें ॥१॥
Footnote: यह सूक्त ऋग्वेद में है-७।३२।२२, २३ यजुर्वेद २७।३, ३६, सामवेद उ० १।१।११। म० १ सामवेद ३।३। ॥ १−(अभि) सर्वतः (त्वा) (शूर) (नोनुमः) अ० २०।१८।४। भृशं स्तुमः (अदुग्धाः) क्षीरपूर्णोधस्त्वेन वर्तमानाः (इव) यथा (धेनवः) दोग्ध्र्यो गावः (ईशानम्) ईश्वरम् (अस्य) दृश्यमानस्य (जगतः) जङ्गमस्य (स्वर्दृशम्) सुखस्य दर्शयितारम् (ईशानम्) (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (तस्थुषः) स्थावरस्य ॥