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यदि॑न्द्र॒ प्रागपा॒गुद॒ङ्न्यग्वा हू॒यसे॒ नृभिः॑। सिमा॑ पु॒रू नृषू॑तो अ॒स्यान॒वेऽसि॑ प्रशर्ध तु॒र्वशे॑ ॥

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Pad Path

यत् । इन्द्र । प्राक् । अपाक् । उदक् । न्यक् । वा । हूयसे । नृऽभि: ॥ सिम । पुरू । नृऽसूत: । असि । आनवे । असि । प्रऽशर्ध । तुर्वशे ॥१२०.१॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:120» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (यत्) जब (प्राक्) पूर्व में, (अपाक्) पश्चिम में, (उदक्) उत्तर में (वा) और (न्यक्) दक्षिण में (नृभिः) मनुष्यों करके (हूयसे) तू पुकारा जाता है। (सिम) हे सीमा बाँधनेवाले (प्रशर्ध) प्रबल ! [परमात्मन्] (आनवे) मनुष्यों के (तुर्वशे) हिंसकों के वश करनेवाले पुरुष में (पुरु) बहुत प्रकार (नृषूतः) तू मनुष्यों से प्रेरणा [प्रार्थना] किया गया (असि) है, (असि) है ॥१॥
Connotation: - मनुष्य सब स्थानों में परमात्मा को बारंबार स्मरण करके परस्पर उपकार करें ॥१॥
Footnote: यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।४।१, २ सामवेद, उ० ।१।१३ म० १ सा० पू० ३।९।७ ॥ १−(यत्) यदा (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (प्राक्) प्राच्यां दिशि (अपाक्) प्रतीच्यां दिशि (उदक्) उदीच्यां दिशि (न्यक्) नीच्यां दक्षिणस्यां दिशि (वा) च (हूयसे) आहूयसे (नृभिः) नेतृभिः (सिम) अविसिविसिशुषिभ्यः कित्। उ० १।१४४। षिञ् बन्धने-मन् कित्। हे सीमाकारक (पुरु) बहुलम् (नृषूतः) षू प्रेरणे-क्त। नरैः प्रेरितः पार्थितः (असि) (आनवे) अनु-अण्। अनवो मनुष्यनाम-निघ० २।३। मनुष्यसम्बन्धिनि (असि) (प्रशर्ध) शृधु उत्साहे-अच्। शर्धो बलनाम-निघ० २।९। हे प्रबल (तुर्वशे) अ० २०।३७।८। तुरां हिंसकानां वशयितरि ॥