Go To Mantra

ता अ॑स्य पृशना॒युवः॒ सोमं॑ श्रीणन्ति॒ पृश्न॑यः। प्रि॒या इन्द्र॑स्य धे॒नवो॒ वज्रं॑ हिन्वन्ति॒ साय॑कं॒ वस्वी॒रनु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

Mantra Audio
Pad Path

ता: । अस्‍य । पृशनऽयुव: । सोमम् । श्रीणन्ति । पृश्नय: ॥ प्रिया: । इन्द्रस्य । धेनव: । वज्रम् । हिन्वन्ति । सायकम् ॥१०९.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:109» Paryayah:0» Mantra:2


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सभापति और सभासदों के लक्षणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (अस्य) इस (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले सभापति] की (पृशनायुवः) स्पर्श चाहती हुई और (पृश्नयः) प्रश्न करती हुई (ताः) वे [प्रजाएँ] (सोमम्) सोम [तत्त्व रस] को (श्रीणन्ति) परिपक्व करती हैं। (प्रियाः) प्रीति करती हुई, (धेनवः) गौओं के समान तृप्त करनेवाली (वस्वीः) बसनेवाली [प्रजाएँ] (स्वराज्यम् अनु) स्वराज्य [अपने राज्य] के पीछे (वज्रम्) वज्र और (सायकम्) बाण को (हिन्वन्ति) बढ़ाती हैं [छोड़ती हैं] ॥२॥
Connotation: - जैसे गौएँ अपने रक्षक पुरुष से अन्न घास आदि पाकर उसको दूध से तृप्त करती हैं, वैसे ही प्रजागण वीर सभापति राजा से सुरक्षित रहकर स्वराज्य पाकर सहाय करें ॥२॥
Footnote: २−(ताः) (अस्य) (पृशनायुवः) सलोपः। स्पर्शनकामाः। (सोमम्) तत्त्वरसम् (श्रीणन्ति) पचन्ति (पृश्नयः) घृणिपृश्निपार्ष्णि०। उ० ४।२। प्रछ जिज्ञासायाम्-नि। जिज्ञासमानाः (प्रियाः) प्रीतिकारिण्यः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः सभाध्यक्षस्य (धेनवः) गावो यथा तर्पयित्र्यः (वज्रम्) आयुधम् (हिन्वन्ति) प्रेरयन्ति (सायकम्) शरम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥