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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
परमेश्वर की प्रार्थना का उपदेश।
Word-Meaning: - (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्म करनेवाले ! (विचर्षणे) हे विविध प्रकार देखनेवाले ! (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] (त्वम्) तू (नः) हमारे लिये (ओजः) बल, (नृम्णम्) धन (आ) और (पृतनासहम्) संग्राम जीतनेवाले (वीरम्) वीर को (आ) भले प्रकार (भर) पुष्ट कर ॥१॥
Connotation: - मनुष्य परमेश्वर से प्रार्थना करके प्रयत्नपूर्वक बलवान्, धनवान् और वीर पुरुषोंवाले होवें ॥१॥
Footnote: यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८ [सायणभाष्य ८७]।१०-१२, सामवेद-उ० ४।२। तृच १३ मन्त्र १ साम० पू० २।२।७ ॥ १−(त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (आ) समन्तात् (भर) पोषय (ओजः) बलम् (नृम्णम्) धनम् (शतक्रतो) बहुकर्मन् (विचर्षणे) विविधद्रष्टः (आ) समुच्चये (वीरम्) वीर्योपेतम् (पृतनासहम्) संग्रामजेतारम् ॥