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वा॑वृधा॒नः शव॑सा॒ भूर्यो॑जाः॒ शत्रु॑र्दा॒साय॑ भि॒यसं॑ दधाति। अव्य॑नच्च व्य॒नच्च॒ सस्नि॒ सं ते॑ नवन्त॒ प्रभृ॑ता॒ मदे॑षु ॥

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ववृधान: । शवसा । भूरिऽओजा: । शत्रु: । दासाय । भियसम् । दधाति ॥ अविऽअनत् । च । विऽअनत् । च । सस्नि । सम् । ते । नवन्त । प्रभृता । मदेषु ॥१०७.५॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:107» Paryayah:0» Mantra:5


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

१-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (शवसा) बल से (वावृधानः) बढ़ता हुआ, (भूर्योजाः) महाबली, (शत्रुः) हमारा शत्रु (दासाय) दानपात्र दास को (भियसम्) भय (दधाति) देता है। (अव्यनत्) गतिशून्य स्थावर (च) और (व्यनत्) गतिवाला जङ्गम जगत् (च) निश्चय करके [परमात्मा में] (सस्नि) लपेटा हुआ है, (प्रभृता) अच्छे प्रकार पुष्ट किये हुए प्राणी (मदेषु) आनन्दों में (ते) तेरी (सम् नवन्त) यथावत् स्तुति करते हैं ॥॥
Connotation: - सर्वशक्तिमान् परमेश्वर समस्त जगत् में व्यापक होकर सबको धारण करता है। उसीकी महिमा को जानकर सब मनुष्य पुरुषार्थपूर्वक अपने विघ्नों को नाश करके प्रसन्न होवें ॥॥
Footnote: ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥