Go To Mantra

इन्द्रं॒ तं शु॑म्भ पुरुहन्म॒न्नव॑से॒ यस्य॑ द्वि॒ता वि॑ध॒र्तरि॑। हस्ता॑य॒ वज्रः॒ प्रति॑ धायि दर्श॒तो म॒हो दि॒वे न सूर्यः॑ ॥

Mantra Audio
Pad Path

इन्द्रम् । तम् । शुम्भ । पुरुऽहन्मन् । अवसे । यस्य । द्विता । विऽधर्तरि ॥ हस्ताय । वज्र: । प्रत‍ि । धायि । दर्शत: । मह: । दिवे । न । सूर्य: ॥१०५.५॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:105» Paryayah:0» Mantra:5


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (पुरुहन्मन्) हे बहुत ज्ञानी ऋषि ! (तम्) उस (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] का (शुम्भ) भाषण कर, (यस्य) जिसके (द्विता) दोनों कर्म [अनुग्रह और निग्रह गुण] (विर्धतरि) बुद्धिमान् जन पर (अवसे) रक्षा के लिये और [जिसका] (दर्शतः) दर्शनीय (महः) महान् (वज्रः) वज्र [दण्डसामर्थ्य] (हस्ताय) हाथ [अर्थात् हमारे बाहुबल] के लिये (प्रति) प्रत्यक्ष (धायि) धारण किया गया है, (न) जैसे (सूर्यः) सूर्य (दिवे) प्रकाश के लिये है ॥॥
Connotation: - परमात्मा अति प्रत्यक्ष रूप से दुष्टों को दण्ड देता है और धर्मात्माओं पर अनुग्रह करता है, ऐसा निश्चय करके विद्वान् लोग सदा ईश्वर की आज्ञा में रहकर सुखी होवें ॥॥
Footnote: ४, −व्याख्यातौ-अथ० २०।९२।१६, १७ ॥