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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (विश्वासु) सब (समत्सु) संग्रामों में (हव्यः) पुकारने योग्य, (वृत्रहा) अन्धकार मिटानेवाला, (परमज्याः) बड़े शत्रुओं का मारनेवाला, (ऋचीषमः) स्तुति के समान गुणवाला (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाला परमात्मा] (नः) हमारे (ब्रह्माणि) वेदज्ञानों और (सवनानि) ऐश्वर्य की वस्तुओं को (आ) सब ओर से (उप) भले प्रकार (भूषतु) शोभायमान करे ॥३॥
Connotation: - मनुष्य परमपिता परमेश्वर का आश्रय लेकर शत्रुओं का नाश करके ऐश्वर्य बढ़ावें ॥३॥
Footnote: मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में हैं-८।९० [सायणभाष्य ७९]।१, २ सामवेद-उ० ७।१।२ मन्त्र १ साम० पू० ३।८।७ ॥ ३−(आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (विश्वासु) सर्वासु (हव्यः) आह्वातव्यः (इन्द्रः) परमेश्वरः (समत्सु) संग्रामेषु (भूषतु) अलंकरोतु (उप) पूजायाम् (ब्रह्माणि) वेदज्ञानानि (सवनानि) ऐश्वर्यवस्तूनि (वृत्रहा) अन्धकारनाशकः (परमज्याः) आतो मनिन् क्वनिब्वनिपश्च। पा० ३।२।७४। परम+ज्या वयोहानौ-विच्। महाशत्रूणां नाशयिता (ऋचीषमः) अथ० २०।३।१। स्तुतितुल्यगुणयुक्तः ॥