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अग्न॒ आ या॑ह्य॒ग्निभि॒र्होता॑रं त्वा वृणीमहे। आ त्वाम॑नक्तु॒ प्रय॑ता ह॒विष्म॑ती॒ यजि॑ष्ठं ब॒र्हिरा॒सदे॑ ॥

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अग्ने । आ । याहि । अग्निऽभि: । होतारम् । त्वा । वृणीमहे ॥ आ । त्वाम् । अनक्तु । प्रऽयता । हविष्मती । वजिष्ठम् । बर्हि:। आऽसदे ॥१०३.२॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:103» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे अग्नि ! [प्रकाशस्वरूप परमेश्वर] (अग्निभिः) ज्ञानप्रकाशों के साथ (आ याहि) तू प्राप्त हो, (होतारम्) दानी (त्वा) तुझको (वृणीमहे) हम स्वीकार करते हैं। (प्रयता) नियमयुक्त (हविष्मती) भक्तिवाली प्रजा (बर्हिः) वृद्धि (आसदे) पाने के लिये (यजिष्ठम्) अत्यन्त संयोग-वियोग करनेवाले (त्वा) तुझको (आ) सब प्रकार से (अनक्तु) प्राप्त होवे ॥२॥
Connotation: - मनुष्य परमात्मा की आज्ञा में रहकर सदा वृद्धि करें ॥२॥
Footnote: मन्त्र २, ३ ऋग्वेद में हैं-८।६० [सायणभाष्य ४९]।१, २ सामवेद-उ० ७।२।७ ॥ २−(अग्ने) हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर (आ याहि) प्राप्तो भव (अग्निभिः) ज्ञानप्रकाशैः (होतारम्) दातारम् (त्वा) त्वाम् (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (आ) समन्तात् (त्वाम्) परमेश्वरम् (अनक्तु) अञ्जू गतौ। प्राप्नोतु (प्रयता) यम-क्त। नियमयुक्त (हविष्मती) भक्तिमती प्रजा (यजिष्ठम्) यष्टृ-इष्ठन्। अतिशयेन यष्टारं संयोगवियोगकर्तारम् (बर्हिः) वृद्धिम् (आसदे) प्राप्तुम् ॥