Go To Mantra

वार्ण त्वा॑ य॒व्याभि॒र्वर्ध॑न्ति शूर॒ ब्रह्मा॑णि। वा॑वृ॒ध्वांसं॑ चिदद्रिवो दि॒वेदि॑वे ॥

Mantra Audio
Pad Path

वा: । न । त्वा । यव्याभि: । वर्धन्ति । शूर । ब्रह्माणि । ववृध्वांसम् । चित् । आद्रिऽव: ॥ दिवेऽदिवे ॥१००.॥

Atharvaveda » Kand:20» Sukta:100» Paryayah:0» Mantra:2


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - (अद्रिवः) हे वज्रधारी (शूर) शूर ! [राजन्] (दिवे दिवे) दिन-दिन (वावृध्वांसम्) बढ़ते हुए (चित्) भी (त्वा) तुझको (ब्रह्माणि) वेदज्ञान (वर्धन्ति) बढ़ाते हैं, (न) जैसे (वाः) जल को (यव्याभिः) जौ आदि अन्न की हित करनेवाली नालियों से [बढ़ाते हैं] ॥२॥
Connotation: - राजा वेदानुकूल चलकर अपनी और प्रजा की वृद्धि करे, जैसे जल को नल से ऊँचा लेजाकर अन्न आदि बढ़ाते हैं ॥२॥
Footnote: २−(वाः) जलम् (न) यथा (त्वा) त्वाम् (यव्याभिः) खलयवमाषतिलवृषब्रह्मणश्च। पा० ।१।७। यव-यत्। यवेभ्यो हिताभिर्जलनालीभिः। नदीभिः। यव्याः नदीनाम-निघ० १।१३। (वर्धन्ति) वर्धयन्ति। उन्नयन्ति (शूर) (ब्रह्माणि) वेदज्ञानानि (वावृध्वांसम्) वर्धतेः क्वसु। वर्धमानम् (चित्) अपि (अद्रिवः) वज्रिन् (दिवे दिवे) दिने दिने ॥