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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (गिर्वणः) हे स्तुतियों से सेवनीय (इन्द्र) इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (अद्य हि) अब ही (त्वा) तुझे (महः) अपनी बड़ी (कामान्) कामनाओं को, (उदा) जल [जल की बाढ़] के पीछे (उदभिः) दूसरी जलों की बाढ़ों के साथ (यन्तः इव) चलते हुए पुरुषों के समान हमने (उप) आदर से (ससृज्महे) समर्पण किया है ॥१॥
Connotation: - जैसे नदी की बाढ़ अति वेग से लगातार चली आती हो और गामों और प्राणी आदि को वहाये ले जाती हो, उसे देख लोग घबड़ाकर भागते हैं, वैसे ही प्रजागण दुष्टों से बचने के लिये राजा की शरण शीघ्र लेवें ॥१॥
Footnote: यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८। [सायणभाष्य ८७]। ७-९, सामवेद-उ० १।१। तृच २३ और मन्त्र १ साम० पू० ।२।८ ॥ १−(अद्य) सम्प्रति (हि) (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (गिर्वणः) स्तुतिभिः सेवनीय (उप) पूजायाम् (त्वा) त्वाम् (कामान्) कमनीयान् मनोरथान् (महः) महतः। विशालान्, (ससृज्महे) वय समर्पितवन्तः (उदा) उदकेन। जलप्रवाहेण (इव) यथा (यन्तः) गच्छन्तः पुरुषाः (उदभिः) उदकैः। अन्यजलप्रवाहैः ॥