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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (इयम्) यह (या) जो (परमेष्ठिनी) सर्वोत्कृष्ट परमात्मा में ठहरनेवाली, (देवी) उत्तमगुणवाली (वाक्) वाणी (ब्रह्मसंशिता) वेदज्ञान से तीक्ष्ण की गयी है, और (यया) जिस [वाणी] के द्वारा (एव) ही (घोरम्) घोर [भयङ्कर पाप] (ससृजे) उत्पन्न हुआ है, (तया) उस [वाणी] के द्वारा (एव) ही (नः) हमारे लिये (शान्तिः) शान्ति [धैर्य, आनन्द] (अस्तु) होवे ॥३॥
Connotation: - जिस वाणी के द्वारा वेदों को विचार कर परमात्मा को पहुँचते हैं, यदि उस वाणी द्वारा कोई अनर्थ होवे, विद्वान् मनुष्य उस भूल को उचित व्यवहार से सुधारकर शान्ति स्थापित करे ॥३॥
Footnote: ३−(इयम्) दृश्यमाना (या) (परमेष्ठिनी) परमे कित्। उ० ४।१०। परम+ष्ठा गतिनिवृत्तौ-इनि कित्, ङीप्, सप्तम्या अलुक् षत्वं च। परमे सर्वोत्कृष्टे परमात्मनि स्थितिशीला (वाक्) वाणी (देवी) दिव्यगुणा (ब्रह्मसंशिता) ब्रह्मणा वेदज्ञानेन सम्यक् तीक्ष्णीकृता उत्तेजिता (यया) वाचा (एव) निश्चयेन (ससृजे) सृष्टम्। उत्पन्नम् (घोरम्) भयङ्करं पापम् (तया) वाचा (एव) (शान्तिः) सुखकरी क्रिया। धैर्यम्। आनन्दः (अस्तु) (नः) अस्मभ्यम् ॥