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यद्वो॑ व॒यं प्र॑मि॒नाम॑ व्र॒तानि॑ वि॒दुषां॑ देवा॒ अवि॑दुष्टरासः। अ॒ग्निष्टद्वि॒श्वादा पृ॑णातु वि॒द्वान्त्सोम॑स्य॒ यो ब्रा॑ह्म॒णाँ आ॑वि॒वेश॑ ॥

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Pad Path

यत्। वः। वयम्। प्रऽमिनाम। व्रतानि। विदुषाम्। देवाः। अविदुःऽतरासः। अग्निः। तत्। विश्वऽअत्। आ। पृणातु। विद्वान्। सोमस्य। यः। ब्राह्मणान्। आऽविवेश ॥५९.२॥

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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

उत्तम मार्ग पर चलने का उपदेश।

Word-Meaning: - (देवाः) हे विद्वानो ! (यत्) यदि (अविदुष्टरासः) निपट अजान (वयम्) हम (वः विदुषाम्) तुम विद्वानों के (व्रतानि) नियमों को (प्रमिनाम) तोड़ डालें। (विश्वात्) सबका प्रबन्ध करनेवाला (अग्निः) [वह] अग्नि [ज्ञानवान् परमेश्वर] (तत्) उसको (आ पृणातु) पूरा कर देवे, (यः) जिस (सोमस्य) ऐश्वर्य के (विद्वान्) जानकार [परमेश्वर] ने (ब्राह्मणान्) ब्राह्मणों [ब्रह्मज्ञानियों] में (आविवेश) प्रवेश किया है ॥२॥
Connotation: - जो मनुष्य अज्ञानी होकर दोष करें, वे विद्वानों के सत्सङ्ग से परमात्मा की उपासनापूर्वक अपने दोषों को हटावें ॥२॥
Footnote: यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१०।२।४ और चौथा पाद कुछ भेद से आ चुका है-अ० १८।३।५५ ॥ २−(यत्) यदि (वः) युष्माकम् (वयम्) (प्रमिनाम) मीञ् हिंसायाम्-लोट्। मीनातेर्निगमे। पा० ७।३।८१। इति ह्रस्वः। प्रकर्षेण हिनसाम विनाशयाम (व्रतानि) कर्माणि (विदुषाम्) जानताम् (देवाः) हे विद्वांसः (अविदुष्टरासः) अत्यर्थम् अविद्वांसः (अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः (तत्) (विश्वात्) अत सातत्यगमने बन्धने च-क्विप्। सर्वप्रबन्धकः (आ) समन्तात् (पृणातु) पूरयतु (विद्वान्) ज्ञानवान् (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (यः) परमेश्वरः (ब्राह्मणान्) ब्रह्मज्ञानिनः पुरुषान् (आविवेश) प्रविष्टवान् ॥