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सा॒यंसा॑यं गृ॒हप॑तिर्नो अ॒ग्निः प्रा॒तःप्रा॑तः सौमन॒सस्य॑ दा॒ता। वसो॑र्वसोर्वसु॒दान॑ एधि व॒यं त्वेन्धा॑नास्त॒न्वं पुषेम ॥

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Pad Path

सायम्ऽसायम्। गृहऽपतिः। नः। अग्निः। प्रातःऽप्रातः। सौमनसस्य। दाता। वसोःऽवसोः। वसुऽदानः। एधि। वयम्। त्वा। इन्धानाः। तन्वम्। पुषेम ॥५५.३॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:55» Paryayah:0» Mantra:3


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

गृहस्थ धर्म का उपदेश।

Word-Meaning: - (सायंसायम्) सायं सायङ्काल में (नः) हमारे (गृहपतिः) घरों का रक्षक, और (प्रातःप्रातः) प्रातः प्रातःकाल में (सौमनसस्य) सुख का (दाता) देनेवाला (अग्निः) अग्नि [ज्ञानवान् परमेश्वर वा विद्वान् पुरुष वा भौतिक अग्नि] तू (वसोर्वसोः) उत्तम-उत्तम प्रकार के (वसुदानः) धन का देनेवाला (एधि) हो, (त्वा) तुझको (इन्धानाः) प्रकाशित करते हुए (वयम्) हम लोग (तन्वम्) शरीर को (पुषेम) पुष्ट करें ॥३॥
Connotation: - मनुष्यों को परमेश्वर की उपासना, विद्वानों के सत्सङ्ग और अग्निहोत्र के अनुष्ठान से स्वास्थ्य बढ़ाकर धनवृद्धि करनी चाहिये ॥३, ४॥
Footnote: मन्त्र ३, ४ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पञ्चमहायज्ञ विषय में व्याख्यात हैं। मन्त्र ३ का चौथा पाद आ चुका है-अ० ५।३।१ ॥ ३−(सायंसायम्) प्रतिसायङ्कालम् (गृहपतिः) गृहाणां रक्षकः (नः) अस्माकम् (अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः पुरुषो वा भौतिकाग्निर्वा त्वम् (प्रातःप्रातः) सर्वदा प्रातःकाले (सौमनसस्य) आनन्दस्य (दाता) वसोर्वसोः उत्तमोत्तमप्रकारस्य (वसुदानः) धनस्य दाता (एधि) भव (वयम्) (त्वा) त्वाम् (इन्धानाः) प्रकाशयन्तः (तन्वम्) शरीरम् (पुषेम) पोषयेम। पुष्टं कुर्याम ॥