Go To Mantra

रात्रिं॑रात्रि॒मप्र॑यातं॒ भर॒न्तोऽश्वा॑येव॒ तिष्ठ॑ते घा॒सम॒स्मै। रा॒यस्पोषे॑ण॒ समि॒षा मद॑न्तो॒ मा ते॑ अग्ने॒ प्रति॑वेशा रिषाम ॥

Mantra Audio
Pad Path

रात्रिम्ऽरात्रिम्। अप्रऽयातम्। भरन्तः। अश्वायऽइव। तिष्ठते। घासम्। अस्मै। रायः। पोषेण। सम्। इषा। मदन्तः। मा। ते। अग्ने। प्रतिऽवेशाः। रिषाम ॥५५.१॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:55» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

गृहस्थ धर्म का उपदेश।

Word-Meaning: - (रात्रिंरात्रिम्) रात्रि-रात्रि को (अस्मै) इस [गृहस्थ] के लिये (अप्रयातम्) पीड़ा न देनेवाले (घासम्) भोजनयोग्य पदार्थ को, (तिष्ठते) थान पर ठहरे हुए (अश्वाय) घोड़े के लिये (इव) जैसे [घास आदि को], (भरन्तः) धरते हुए, (रायः) धन की (पोषेण) पुष्टि से और (इषा) अन्न से (सम्) अच्छे प्रकार (मदन्तः) आनन्द करते हुए (ते) तेरे (प्रतिवेशाः) सन्मुख रहनेवाले हम (अग्ने) हे अग्नि ! [तेजस्वी विद्वान्] (मा रिषाम) न दुःखी होवें ॥१॥
Connotation: - गृहस्थ लोग, जैसे रात्रि में थके घोड़े को घास अन्न आदि देकर प्रसन्न करते हैं, वैसे ही मुख्य परिश्रमी पुरुष को आदर करके सुखी रक्खें ॥१॥
Footnote: यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है-११।७५ और ऊपर आ चुका है-अ० ३।१५।८ ॥ १−(रात्रिंरात्रिम्) प्रतिरात्रिम् (अप्रयातम्) यत ताडने, णिजन्तात्-क्विप्। अताडकम्। सुखप्रदम् (भरन्तः) धरन्तः। पोषयन्तः (अश्वाय) घोटकाय (इव) यथा (तिष्ठते) स्वस्थाने वर्तमानाय (घासम्) भक्षणीयं पदार्थम् (रायः) धनस्य (पोषेण) वर्धनेन (सम्) सम्यक् (इषा) अन्नेन (मदन्तः) हृष्यन्तः (ते) तव (अग्ने) हे तेजस्विन् विद्वन् (प्रतिविशाः) प्रत्यक्षं वर्तमानाः (मा रिषाम) कर्मणि कर्तृप्रयोगः। हिंसिता मा भूम ॥