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उ॒षसे॑ नः॒ परि॑ देहि॒ सर्वा॑न्रात्र्यना॒गसः॑। उ॒षा नो॒ अह्ने॒ आ भ॑जा॒दह॒स्तुभ्यं॑ विभावरि ॥

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उषसे। नः। परि। देहि। सर्वान्। रात्रि। अनागसः ॥ उषाः। नः। अह्ने। आ। भजात्। अहः। तुभ्यम्। विभावरि ॥५०.७॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:50» Paryayah:0» Mantra:7


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (रात्रि) हे रात्रि ! (उषसे) उषा [प्रभातवेला] को (नः) हम (सर्वान्) सब (अनागसः) निर्दोषों को (परि देहि) सौंप। (उषाः) उषा (नः) हमें (अह्ने) दिन को, और (अहः) दिन (तुभ्यम्) तुझको (आ भजात्) देवे, (विभावरि) हे बड़ी चमकवाली ॥७॥
Connotation: - मनुष्य दिन और राति सदा धर्म के साथ अपनी वृद्धि करें ॥७॥
Footnote: यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-४८।२ ॥ ७−(उषसे) प्रभातवेलायै (नः) अस्मान् (परिदेहि) समर्पय (सर्वान्) (रात्रि) (अनागसः) निर्दोषान् (उषाः) प्रभातवेला (नः) अस्मान् (अह्ने) दिनाय (आभजात्) भज सेवायाम्-लेटि, आडागमः। आभजेत् समन्तात् सेवेत। समर्पयेत्। अन्यत् पूर्ववत्-४८।२ ॥