Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
Word-Meaning: - (अध) और (रात्रि) हे रात्रि ! (तृष्टधूमम्) क्रूर धुएँवाले [विषैली श्वासवाले] (अहिम्) साँप को (अशीर्षाणम्) रुण्ड [बिना शिर का] (कृणु) करदे [शिर कुचल कर मार डाल]। (वृकस्य) भेड़िये के (अक्षौ) दोनों आँखें (निः जह्याः) निकाल कर फेंक दे, (तेन) उससे (तम्) उसको (द्रुपदे) काठ के बन्धन में (जहि) मार डाल ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य सर्प और भेड़िये आदि के समान रात्रि में दुःख देवें, उन्हें बन्दीगृह में बन्द करके कष्ट दिया जावे ॥१॥
Footnote: यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-४७।८ ॥ १−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-४७।८। अत्र विशेषो व्याख्यायते (अक्षौ) अक्षिणी। चक्षुषी (निः) निःसार्य (जह्याः) ओहाक् त्यागे-लिङ्। त्यजेः। प्रक्षिपेः ॥