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यो अ॒द्य स्ते॒न आय॑त्यघा॒युर्मर्त्यो॑ रि॒पुः। रात्री॒ तस्य॑ प्र॒तीत्य॒ प्र ग्री॒वाः प्र शिरो॑ हनत् ॥

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Pad Path

यः। अद्य। स्तेनः। आऽअयति। अघऽयुः। मर्त्यः। रिपुः। रात्री। तस्य। प्रतिऽइत्‍य। प्र। ग्रीवाः। प्र। शिरः। हनत् ॥४९.९॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:49» Paryayah:0» Mantra:9


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (अद्य) आज (यः) जो (अघायुः) पाप चीतनेवाला (रिपुः) वैरी, (स्तेनः) चोर (मर्त्यः) मनुष्य (आ-अयति) आवे। (रात्री) रात्रि (प्रतीत्य) प्रतीति करके (तस्य) उसके (ग्रीवाः) गले को (प्र) सर्वथा, और (शिरः) शिर को (प्र) सर्वथा (हनत्) तोड़ डाले ॥९॥
Connotation: - यदि रात्रि में चोर-डाकू आदि आकर लूट-खसोट मचावें, रक्षक गण उनको यथावत् दण्ड देकर प्रजा की रक्षा करें ॥९, १०॥
Footnote: ९−(यः) (अद्य) अस्मिन् दिने (स्तेनः) चोरः (आयति) आङ्+इण् गतौ-लेट्। आगच्छेत् (अघायुः) पापचिन्तकः (मर्त्यः) मनुष्यः (रिपुः) शत्रुः (रात्री) (तस्य) शत्रोः (प्रतीत्य) प्रतीतिं प्रत्यक्षज्ञानं प्राप्य (प्र) सर्वथा (ग्रीवाः) कन्धरावयवान् (प्र) सर्वथा (शिरः) मस्तकम् (हनत्) लेटि रूपम्। हन्यात्। नाशयेत् ॥