भ॒द्रासि॑ रात्रि चम॒सो न वि॒ष्टो विष्व॒ङ्गोरू॑पं युव॒तिर्बि॑भर्षि। चक्षु॑ष्मती मे उश॒ती वपूं॑षि॒ प्रति॒ त्वं दि॒व्या न क्षा॑ममुक्थाः ॥
भद्रा। असि। रात्रि। चमसः। न। विष्टः। विष्वङ्। गोऽरूपम्। युवतिः। बिभर्षि। चक्षुष्मती। मे। उशती। वपूंषि। प्रति। त्वम्। दिव्या। न। क्षाम्। अमुक्थाः ॥४९.८॥
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
रात्रि में रक्षा का उपदेश।