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प्र पा॑दौ॒ न यथाय॑ति॒ प्र हस्तौ॒ न यथाशि॑षत्। यो म॑लि॒म्लुरु॒पाय॑ति॒ स संपि॑ष्टो॒ अपा॑यति। अपा॑यति॒ स्वपा॑यति॒ शुष्के॑ स्था॒णावपा॑यति ॥

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Pad Path

प्र। पादौ। न। यथा। अयति। प्र। हस्तौ। न। यथा। अशिषत्। यः। मलिम्लुः। उपऽअयति। सः। सम्ऽपिष्टः। अप ।अयति। अप। अयति। सुऽअपायति। शुष्के। स्थाणौ। अप। अयति ॥४९.१०॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:49» Paryayah:0» Mantra:10


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (पादौ) [उसके] दोनों पैरों को (प्र) सर्वथा [तोड़ डाले-मन्त्र ९], (यथा) जिससे वह (न) न (अयति) चल सके, (हस्तौ) [उसके] दोनों हाथों को (प्र) सर्वथा [तोड़ डाले], (यथा) जिससे वह (न) न (अशिषत्) खा सके। (यः) जो (मलिम्लुः) मलिन आचरणवाला लुटेरा (उप-अयति) पास आवे, (सः) वह (संपिष्टः) पीस डाला गया (अप अयति) निकल जावे। (अप अयति) वह निकल जावे, (सु-अप-अयति) वह सर्वथा निकल जावे, (शुष्के) सूखे (स्थाणौ) स्थान में (अप अयति) निकल जावे ॥१०–
Connotation: - यदि रात्रि में चोर-डाकू आदि आकर लूट-खसोट मचावें, रक्षक गण उनको यथावत् दण्ड देकर प्रजा की रक्षा करें ॥९, १०॥
Footnote: १०−(प्र) सर्वथा हनत्-म० ९ (पादौ) गमनसाधनभूतौ (न) निषेधे (यथा) येन प्रकारेण (अयति) गच्छेत् (प्र) प्रहनत् (हस्तौ) करौ (न) निषेधे (यथा) (अशिषत्) अश भोजने-लेट्, अडागमः। सिब्बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्, इडागमः। भोजनं कुर्यात् (यः) (मलिम्लुः) अ० ८।६।२। मलि+म्लुचु गतौ-डु प्रत्ययः। मलिं मलं पापं म्लोचति प्राप्नोतीति सः। मलिनाचारः (उप-अयति) आगच्छेत् (सः) (सं पिष्टः) सम्यक् चूर्णितः (अप-अयति) दूरे गच्छेत् (अप अयति) स दूरं गच्छेत् (सु-अप-अयति) स सर्वथा दूरे गच्छतु (शुष्के) शुष शोषणे-क्त। शुषः कः। पा० ८।२।५१। इति कत्वम्। प्राप्तशोषणे। नीरसे (स्थाणौ) स्थाने (अप अयति) दूरे गच्छतु ॥