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अथो॒ यानि॑ च॒ यस्मा॑ ह॒ यानि॑ चा॒न्तः प॑री॒णहि॑। तानि॑ ते॒ परि॑ दद्मसि ॥

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अथो इति। यानि। च। यस्मै। ह। यानि। च। अन्तः। परिऽणहि। तानि। ते। परि। दद्मसि ॥४८.१॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:48» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (च) और (अथो) फिर (ह) निश्चय करके (यानि) जिन [वस्तुओं] का (यस्म) हम प्रयत्न करें, (च) और (यानि) जो [वस्तुएँ] (अन्तः) भीतर (परीणहि) बाँधने के आधार [मञ्जूषा आदि] में हैं। (तानि) उन सबको (ते) तुझे (परि दद्मसि) हम सौंपते हैं ॥१॥
Connotation: - मनुष्य अपने सब पदार्थों को रात्रि में सावधानी से रखकर रक्षा करें ॥१॥
Footnote: बम्बई गवर्नमेन्ट छापे की पुस्तक के पदपाठ में (यस्म) पद के स्थान पर [यस्मै] छपा है, हमने (यस्म) मूल पद माना है ॥ १−(अथो) अपि च (यानि) वस्तूनि (च) (यस्म) यसु प्रयत्ने लेट्, अडभावश्छान्दसः। स उत्तमस्य। पा० ३।४।९८। उत्तमपुरुषस्य सकारस्य लोपः। प्रयत्नेन प्राप्नुयाम (ह) निश्चयेन (यानि) वस्तूनि (च) (अन्तः) मध्ये (परीणहि) परि+णह बन्धने-क्विप्। बन्धनाधारे मञ्जूषादौ (तानि) वस्तूनि (ते) तुभ्यम् (परि दद्मसि) समर्पयामः ॥