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द्वौ च॑ ते विंश॒तिश्च॑ ते॒ रात्र्येका॑दशाव॒माः। तेभि॑र्नो अ॒द्य पा॒युभि॒र्नु पा॑हि दुहितर्दिवः ॥

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द्वौ। च। ते। विंशतिः। च। ते। रात्रि। एकादश। अवमाः। तेभिः। नः। अद्य। पायुऽभिः। नु। पाहि। दुहितः। दिवः ॥४७.५॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:47» Paryayah:0» Mantra:5


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (रात्रि) हे रात्रि ! (च) और (ते) तेरे (विंशतिः द्वौ) बीस और दो [बाईस], (च) और (ते) तेरे (एकादश) ग्यारह और (अवमाः) [जो इस संख्या से] नीचे हैं, (दिवः दुहितः) हे आकाश की भर देनेवाली ! (तेभिः पायुभिः) उन रक्षकों द्वारा (नः) हमें (अद्य) आज (नु) शीघ्र (पाहि) बचा ॥५॥
Connotation: - मन्त्र ३-५ में ९९ में से ११, ११ घटते-घटते ११ तक रहे हैं और [नीचे] शब्द से शेष संख्या एक तक मानी है। भाव यह है कि मनुष्य अपनी योग्यता के अनुसार बहुत वा थोड़े रक्षकों द्वारा रात्रि में रक्षा करते रहें •॥३-५॥
Footnote: ५−(द्वौ विंशतिः) द्व्यधिकविंशतिसंख्याकाः (च) (ते) तव (च) (ते) तव (रात्रि) (एकादश) एकोत्तरदशसंख्याकाः (अवमाः) उक्तसंख्यातो निकृष्टा न्यूनाः (तेभिः) तैः (नः) अस्मान् (अद्य) अस्मिन् दिने (पायुभिः) रक्षकैः (नु) क्षिप्रम् (पाहि) रक्ष (दुहितः) हे प्रपूरयित्रि (दिवः) आकाशस्य ॥