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ष॒ष्टिश्च॒ षट्च॑ रेवति पञ्चा॒शत्पञ्च॑ सुम्नयि। च॒त्वार॑श्चत्वारिं॒शच्च॒ त्रय॑स्त्रिं॒शच्च॑ वाजिनि ॥

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षष्टिः। च। षट्। च। रेवति। पञ्चाशत्। पञ्च। सुम्नयि। चत्वारः। चत्वारिंशत्। च। त्रयः। त्रिंशत्। च। वाजिनि ॥४७.४॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:47» Paryayah:0» Mantra:4


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रात्रि में रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (रेवति) हे धनवती ! (षष्टिः च षट्) साठ और छह [छियासठ] (च) और (सुम्नयि) हे सुखप्रदे ! (पञ्चाशत् पञ्च) पचास और पाँच [पचपन], (च) और (वाजिनि) हे बलवती ! [वा वेगवती] (चत्वारिंशत् चत्वारः) चालीस और चार [चवालीस], (च) और (त्रिंशत् त्रयः) तीस और तीन [तेंतीस] ॥४॥
Connotation: - मन्त्र ३-५ में ९९ में से ११, ११ घटते-घटते ११ तक रहे हैं और [नीचे] शब्द से शेष संख्या एक तक मानी है। भाव यह है कि मनुष्य अपनी योग्यता के अनुसार बहुत वा थोड़े रक्षकों द्वारा रात्रि में रक्षा करते रहें •॥३-५॥
Footnote: ४−(षष्टिः षट्) षडुत्तरषष्टिसंख्याकाः (च) (च) (रेवति) हे धनवति (पञ्चाशत् पञ्च) पञ्चोत्तरपञ्चाशत्संख्याकाः (सुम्नयि) छन्दसि परेच्छायां क्यच्। वा० पा० ३।१।८। सुम्न-क्यच्, अच्, गौरादित्वाद् ङीप्। सुम्नं सुखं परेषामिच्छतीति या सा सुम्नयी तत्सम्बुद्धौ। हे सुखप्रदे (चत्वारिंशत् चत्वारः) चतुरुत्तरचत्वारिंशत्संख्याकाः (च) (त्रयस्त्रिंशत्) त्रिरुत्तरत्रिंशत्संख्याकाः (च) (वाजिनि) हे बलवति हे वेगवति ॥