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ब्रह्म॒ होता॒ ब्रह्म॑ य॒ज्ञा ब्रह्म॑णा॒ स्वर॑वो मि॒ताः। अ॑ध्व॒र्युर्ब्रह्म॑णो जा॒तो ब्रह्म॑णो॒ऽन्तर्हि॑तं ह॒विः ॥

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ब्रह्म। होता। ब्रह्म। यज्ञाः। ब्रह्मणा । स्वरवः। मिताः। अध्वर्युः। ब्रह्मणः। जातः। ब्रह्मणः। अन्तःऽहितम्। हविः ॥४२.१॥

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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

वेद की स्तुति का उपदेश।

Word-Meaning: - (ब्रह्म=ब्रह्मणा) वेद द्वारा (होता) होता [हवनकर्ता], (ब्रह्म) वेद द्वारा (यज्ञाः) अनेक यज्ञ होते हैं, (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (स्वरवः) यज्ञस्तम्भ (मिताः) खड़े किये जाते हैं। (ब्रह्मणः) वेद से (अध्वर्युः) यज्ञकर्ता (जातः) प्रसिद्ध होता है, (ब्रह्मणः) वेद के (अन्तर्हितम्) भीतर रक्खा हुआ (हविः) हवि [हवन विधान] है ॥१॥
Connotation: - वेद द्वारा ही याजक, यज्ञव्यवहार और यज्ञविधान निश्चित होते हैं ॥१॥
Footnote: यह सूक्त कुछ भेद से महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि संन्यासाश्रमप्रकरण में उद्धृत है ॥१−(ब्रह्म) तृतीयार्थे प्रथमा। ब्रह्मणा। वेदद्वारा (होता) हवनकर्ता (ब्रह्म) वेदद्वारा (यज्ञाः) यज्ञव्यवहाराः (ब्रह्मणा) वेदद्वारा (स्वरवः) यूपाः। यज्ञस्तम्भाः (मिताः) डुमिञ् प्रक्षेपणे-क्त। प्रक्षिप्ताः। स्थापिताः (अध्वर्युः) ऋत्विक् (ब्रह्मणः) वेदात् (जातः) प्रसिद्धो भवति (ब्रह्मणः) वेदस्य (अन्तर्हितम्) मध्ये धृतम्। प्रणीतम् (हविः) हवनविधानम् ॥