यन्मे॑ छि॒द्रं मन॑सो॒ यच्च॑ वा॒चः सर॑स्वती मन्यु॒मन्तं॑ ज॒गाम॑। विश्वै॒स्तद्दे॒वैः स॒ह सं॑विदा॒नः सं द॑धातु॒ बृह॒स्पतिः॑ ॥
Pad Path
यत्। मे। छिद्रम्। मनसः। यत्। च। वाचः। सरस्वती। मन्युऽमन्तम्। जगाम। विश्वैः। तत्। देवैः। सह। सम्ऽविदानः। सम्। दधातु। बृहस्पतिः ॥४०.१॥
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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।
Word-Meaning: - (यत्) जो (मे) मेरे (मनसः) मन का (च) और (यत्) जो (वाचः) वाणी का (छिद्रम्) दोष है, [जिससे] (सरस्वती) सरस्वती [उत्तम वेदविद्या] (मन्युमन्तम्) क्रोधयुक्त [व्यवहार] को (जगाम) प्राप्त हुई है। (तत्) उस [दोष] को (विश्वैः) सब (देवैः सह) उत्तम गुणों के साथ (संविदानः) मिलता हुआ (बृहस्पतिः) बड़े आकाश आदि का पालक परमेश्वर (सं दधातु) सन्धियुक्त करे ॥१॥
Connotation: - जब मनुष्य मानसिक वा वाचिक दोष से विद्या देवी को क्रोधित कर देवे, वह परमात्मा की शरण लेकर अपनी न्यूनताएँ पूरी करे ॥१॥
Footnote: इस मन्त्र का मिलान करो-यजु०३६।२॥१−(यत्) (मे) मम (छिद्रम्) दोषम् (मनसः) हृदयस्य (यत्) (च) (वाचः) वाण्याः (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (मन्युमन्तम्) क्रोधवन्तं व्यवहारम् (जगाम) प्राप (विश्वैः) सर्वैः (तत्) छिद्रम् (देवैः) उत्तमगुणैः (सह) (संविदानः) संगच्छमानः (सं दधातु) सन्धानं करोतु (बृहस्पतिः) बृहतामाकाशादीनां पालक ईश्वरः ॥