Go To Mantra

त्रीणि॑ ते कुष्ठ॒ नामा॑नि नद्यमा॒रो न॒द्यारि॑षः। नद्या॒यं पुरु॑सो रिषत्। यस्मै॑ परि॒ब्रवी॑मि त्वा सा॒यंप्रा॑त॒रथो॒ दिवा॑ ॥

Mantra Audio
Pad Path

त्रीणि। ते। कुष्ठ। नामानि। नद्यऽमारः। नद्यऽरिषः। नद्य। अयम्। पुरुषः। रिषत्। यस्मै। परिऽब्रवीमि। त्वा। सायम्ऽप्रातः। अथो इति। दिवा ॥३९.२॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:39» Paryayah:0» Mantra:2


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रोगनाश करने का उपदेश।

Word-Meaning: - (कुष्ठ) हे कुष्ठ ! [मन्त्र १] (ते) तेरे (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम हैं−(नद्यमारः) नद्यमार [नदी में उत्पन्न रोगों का मारनेवाला], और (नद्यरिषः) नद्यरिष [नदी में उत्पन्न रोगों का हानि करनेवाला]। (नद्य) हे नद्य ! [नदी में उत्पन्न कुष्ठ] (अयम्) वह (पुरुषः) पुरुष [रोगों को] (रिषत्) मिटावे। (यस्मै) जिसको (त्वा) तुझे (सायंप्रातः) सायंकाल और प्रातःकाल (अथो) और भी (दिवा) दिन में (परिब्रवीमि) मैं बतलाऊँ ॥२॥
Connotation: - इस औषध के तीन नाम हैं−कुष्ठ, नद्यमार और नद्यरिष। मनुष्य उसके सेवन से सब रोगों का नाश करें ॥२॥
Footnote: २−(त्रीणि) (ते) तव (कुष्ठ) म०१। हे औषधविशेष (नामानि) (नद्यमारः) नदी-यत्। नद्यां भवानां रोगाणां मारकः (नद्यरिषः) नद्यां भवानां रोगाणां हन्ता (नद्य) हे नद्यां भव (अयम्) सः (पुरुषः) (रिषत्) रोगान् नाशयेत् (यस्मै) रोगिणे (परिब्रवीमि) औषधप्रयोगेण कथयामि (त्वा) कुष्ठम् (सायंप्रातः) सायं प्रातश्च (अथो) अपि च (दिवा) दिवसकाले ॥