Go To Mantra

ऐतु॑ दे॒वस्त्रा॑यमाणः॒ कुष्ठो॑ हि॒मव॑त॒स्परि॑। त॒क्मानं॒ सर्वं॑ नाशय॒ सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यः ॥

Mantra Audio
Pad Path

आ। एतु। देवः। त्रायमाणः। कुष्ठः। हिमऽवतः। परि। तक्मानम्। सर्वम्। नाशय। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥ ३९.१॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:39» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रोगनाश करने का उपदेश।

Word-Meaning: - (देवः) दिव्य गुणवाला, (त्रायमाणः) रक्षा करता हुआ (कुष्ठः) कुष्ठ [रोग बाहर करनेवाला औषध विशेष] (हिमवतः परि) हिमवाले देश से (आ एतु) आवे। तू (सर्वम्) सब (तक्मानम्) जीवन के कष्ट देनेवाले ज्वर को (च) और (सर्वाः) सब (यातुधान्यः) दुःखदायिनी पीड़ाओं को (नाशय) नाश कर दे ॥१॥
Connotation: - कुष्ठ वा कूट औषध ठण्डे देशों में होता है, उसको प्राप्त करके ज्वर आदि रोगों का नाश करें ॥१॥
Footnote: इस सूक्त का मिलान करो-अथर्व०४।५ तथा ६।९५॥१−(ऐतु) आगच्छतु (देवः) दिव्यगुणः (त्रायमाणः) पालयमानः (कुष्ठः) अ०५।४।१। हनिकुषिनी०। उ०२।२। कुष निष्कर्षे-क्थन्। रोगाणां निष्कर्षको बहिष्कर्ता। औषधविशेषः (हिमवतः) हिमदेशात् (परि) सर्वतः (तक्मानम्) जीवनस्य क्लेशकारिणं ज्वरम् (सर्वम्) (नाशय) दूरीकुरु (सर्वाः) (च) (यातुधान्यः) दुःखदायिनीः पीडाः ॥