Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
बल की प्राप्ति का उपदेश ॥
Word-Meaning: - [हे परमात्मन् !] (ऋतुभ्यः) ऋतुओं के लिये, (आर्तवेभ्यः) ऋतुओं में उत्पन्न पदार्थों के लिये, (माद्भ्यः) महीनों के लिये, (संवत्सरेभ्यः) वर्षा के लिये, (धात्रे) पोषक पुरुष के लिये, (विधात्रे) बुद्धिमान् जन के लिये, (समृधे) बढ़ती करनेवाले के लिये और (भूतस्य) प्राणीमात्र के (पतये) रक्षक पुरुष के लिये (त्वा) तुझे (यजे) मैं पूजता हूँ ॥४॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि अपने समस्त समय और समस्त पदार्थों को संसार के हित में लगाकर परमात्मा की उपासना करते रहें ॥४॥
Footnote: ४−(ऋतुभ्यः) ऋतूनां हिताय (त्वा) (आर्तवेभ्यः) ऋतुषु भवेभ्यः पदार्थेभ्यः (माद्भ्यः) मासेभ्यः (संवत्सरेभ्यः) वर्षेभ्यः (धात्रे) पोषकाय (विधात्रे) मेधाविने-निघ०३।१५ (समृधे) समर्धयित्रे। वर्धयित्रे (भूतस्य) प्राणिमात्रस्य (पतये) पालकाय (यजे) पूजयामि ॥