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ऋ॒तुभ्य॑ष्ट्वार्त॒वेभ्यो॑ मा॒द्भ्यः सं॑वत्स॒रेभ्यः॑। धा॒त्रे वि॑धा॒त्रे स॒मृधे॑ भू॒तस्य॒ पत॑ये यजे ॥

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ऋतुऽभ्यः। त्वा। आर्तवेभ्यः। मात्ऽभ्यः। सम्ऽवत्सरेभ्यः। धात्रे। विऽधात्रे। सम्ऽऋधे। भूतस्य। पतये। यजे ॥३७.४॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:37» Paryayah:0» Mantra:4


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

बल की प्राप्ति का उपदेश –॥

Word-Meaning: - [हे परमात्मन् !] (ऋतुभ्यः) ऋतुओं के लिये, (आर्तवेभ्यः) ऋतुओं में उत्पन्न पदार्थों के लिये, (माद्भ्यः) महीनों के लिये, (संवत्सरेभ्यः) वर्षा के लिये, (धात्रे) पोषक पुरुष के लिये, (विधात्रे) बुद्धिमान् जन के लिये, (समृधे) बढ़ती करनेवाले के लिये और (भूतस्य) प्राणीमात्र के (पतये) रक्षक पुरुष के लिये (त्वा) तुझे (यजे) मैं पूजता हूँ ॥४॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि अपने समस्त समय और समस्त पदार्थों को संसार के हित में लगाकर परमात्मा की उपासना करते रहें ॥४॥
Footnote: ४−(ऋतुभ्यः) ऋतूनां हिताय (त्वा) (आर्तवेभ्यः) ऋतुषु भवेभ्यः पदार्थेभ्यः (माद्भ्यः) मासेभ्यः (संवत्सरेभ्यः) वर्षेभ्यः (धात्रे) पोषकाय (विधात्रे) मेधाविने-निघ०३।१५ (समृधे) समर्धयित्रे। वर्धयित्रे (भूतस्य) प्राणिमात्रस्य (पतये) पालकाय (यजे) पूजयामि ॥