दु॒र्हार्दः॒ संघो॑रं॒ चक्षुः॑ पाप॒कृत्वा॑न॒माग॑मम्। तांस्त्वं स॑हस्रचक्षो प्रतीबो॒धेन॑ नाशय परि॒पाणो॑ऽसि जङ्गि॒डः ॥
Pad Path
दुःऽहार्दः। सम्ऽघोरम्। चक्षुः। पापऽकृत्वानम्। आ। अगमम्। तान्। त्वम्। सहस्रचक्षो इति सहस्रऽचक्षो। प्रतिऽबोधेन। नाशय। परिऽपानः। असि। जङ्गिडः ॥३५.३॥
Atharvaveda » Kand:19» Sukta:35» Paryayah:0» Mantra:3
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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सबकी रक्षा का उपदेश।
Word-Meaning: - (दुर्हार्दः) कठोर हृदयवालों को, (संघोरम्) बड़े भयानक (चक्षुः) नेत्र को, और (पापकृत्वानम्) पाप करनेवाले पुरुष को (आ अगमम्) मैंने पाया है। (सहस्रचक्षो) हे सहस्र प्रकार से देखे गये ! (त्वम्) तू (तान्) उनको (प्रतिबोधेन) सावधानी से (नाशय) नाश कर, तू (परिपाणः) महारक्षक (जङ्गिडः) जङ्गिड [संचार करनेवाला औषध] (असि) है ॥३॥
Connotation: - जो मनुष्य जङ्गिड का सेवन करते हैं, वे महाबली होकर शत्रुओं का नाश करते हैं ॥३॥
Footnote: ३−(दुर्हार्दः) दुष्टहृदयान् (संघोरम्) अतिभयानकम् (चक्षुः) दर्शनम् (पापकृत्वानम्) शीङ्क्रुशिरुहि०। उ०४।११४। पाप+करोतेः-क्वनिप्। पापकर्तारम् (आगमम्) अहं प्राप्तवानस्मि (तान्) (त्वम्) (सहस्रचक्षो) भृमृशीङ्०। उ०१।७। चक्षिङ् दर्शने-उ प्रत्ययः सहस्रप्रकारेण दर्शनं यस्मिन् तत् सम्बुद्धौ (प्रतिबोधेन) सावधानत्वेन। चैतन्येन (नाशय) (परिपाणः) सर्वतो रक्षकः (असि) (जङ्गिडः) संचारशील औषधविशेषः ॥