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इन्द्र॑स्य॒ नाम॑ गृ॒ह्णन्त॒ ऋष॑यो जङ्गि॒डं द॑दुः। दे॒वा यं च॒क्रुर्भे॑ष॒जमग्रे॑ विष्कन्ध॒दूष॑णम् ॥

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इन्द्रस्य। नाम। गृह्णन्तः। ऋषयः। जङ्गिडम्। ददुः। देवाः। यम्। चक्रुः। भेषजम्। अग्रे। विस्कन्धऽदूषणम् ॥३५.१॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:35» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सबकी रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (इन्द्रस्य) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् परमात्मा] का (नाम) नाम (गृह्णन्तः) लेते हुए (ऋषयः) ऋषियों [तत्त्वदर्शियों] ने (जङ्गिडम्) जङ्गिड [संचार करनेवाले औषध] को (ददुः) दिया है। (यम्) जिसको (देवाः) विद्वानों ने (अग्रे) पहिले से (विष्कन्धदूषणम्) विष्कन्ध [विशेष सुखानेवाले वात रोग] का मिटानेवाला (भेषजम्) औषध (चक्रुः) किया है ॥१॥
Connotation: - तत्त्वदर्शी वैद्यों ने परमेश्वर की सृष्टि में खोज लगाते-लगाते जङ्गिड औषध को बड़ी अद्भुत माना है ॥१॥
Footnote: इस सूक्त का मिलान करो गत सूक्त से तथा-अथर्व का०२।४ से ॥१−(इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः परमेश्वरस्य (नाम) (गृह्णन्तः) उच्चारयन्तः (ऋषयः) तत्त्वदर्शिनः (जङ्गिडम्) सू०३४।१। संचारशीलं महौषधविशेषम् (ददुः) दत्तवन्तः (देवाः) विद्वांसः (यम्) जङ्गिडम् (चक्रुः) कृतवन्तः (भेषजम्) औषधम् (अग्रे) आदौ (विष्कन्धदूषणम्) सू०३४।५। विशेषेण शोषकस्य वातरोगस्य खण्डयितारम् ॥