ती॒क्ष्णो राजा॑ विषास॒ही र॑क्षो॒हा वि॒श्वच॑र्षणिः। ओजो॑ दे॒वानां॒ बल॑मु॒ग्रमे॒तत्तं ते॑ बध्नामि ज॒रसे॑ स्व॒स्तये॑ ॥
Pad Path
तीक्ष्णः। राजा। विऽससहिः। रक्षःऽहा। विश्वऽचर्षणिः। ओजः। देवानाम्। बलम्। उग्रम्। एतत्। तम्। ते। बध्नामि। जरसे। स्वस्तये ॥३३.४॥
Atharvaveda » Kand:19» Sukta:33» Paryayah:0» Mantra:4
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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
उन्नति करने का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (तीक्ष्णः) तीक्ष्ण (राजा) राजा, (विषासहिः) सदा विजयी, (रक्षोहा) राक्षसों का नाश करने हारा, (विश्वचर्षणिः) सर्वद्रष्टा और (देवानाम्) विद्वानों का (ओजः) पराक्रम और (एतत्) यह [दृश्यमान] (उग्रम्) उग्र (बलम्) बल है, (तम्) उस [परमात्मा] को (ते) तेरी (जरसे) स्तुति बढ़ाने [वा निर्बलता हटाने] के लिये और (स्वस्तये) मङ्गल के लिये (बध्नामि) मैं धारण करता हूँ ॥४॥
Connotation: - मनुष्य सर्वशक्तिमान् सर्वदर्शक जगदीश्वर को हृदय में धारण करके उपाय के साथ निर्बलता हटावें और सामर्थ्य बढ़ाकर स्तुति प्राप्त करते हुए आनन्द भोगें ॥४॥
Footnote: ४−(तीक्ष्णः) तीव्रः (राजा) शासकः (विषासहिः) अ०१।२९।६। षह अभिभवे-यङ्-कि। अतिशयेन विजयी (रक्षोहा) राक्षसानां हन्ता (विश्वचर्षणिः) अ०४।३२।४। सर्वद्रष्टा (ओजः) पराक्रमः (देवानाम्) विदुषाम् (बलम्) सामर्थ्यम् (उग्रम्) प्रचण्डम् (एतत्) दृश्यमानम् (तम्) परमात्मानम् (ते) तव (बध्नामि) धारयामि (जरसे) जरां स्तुतिं प्राप्तुम्। जरां निर्बलतां परिहर्तुम् (स्वस्तये) मङ्गलाय ॥