त्वं भू॑मि॒मत्ये॒ष्योज॑सा॒ त्वं वेद्यां॑ सीदसि॒ चारु॑रध्व॒रे। त्वां प॒वित्र॒मृष॑योऽभरन्त॒ त्वं पु॑नीहि दुरि॒तान्य॒स्मत् ॥
Pad Path
त्वम्। भूमिम्। अति। एषि। ओजसा। त्वम्। वेद्याम्। सीदसि। चारुः। अध्वरे। त्वाम्। पवित्रम्। ऋषयः। अभरन्त। त्वम्। पुनीहि। दुःऽइतानि। अस्मत् ॥३३.३॥
Atharvaveda » Kand:19» Sukta:33» Paryayah:0» Mantra:3
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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
उन्नति करने का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे परमात्मन् !] (त्वम्) तू (ओजसा) पराक्रम से (भूमिम्) भूमि को (अति एषि) पार कर जाता है, (त्वम्) तू (चारुः) शोभायमान होकर (अध्वरे) हिंसारहित यज्ञ में (वेद्याम्) वेदी पर (सीदति) वैठता है। (त्वाम् पवित्रम्) तुझ पवित्र को (ऋषयः) ऋषियों [तत्त्वदर्शियों] ने (अभरन्त) धारण किया है, (त्वम्) तू (दुरितानि) संकटों को (अस्मत्) हमसे (पुनीहि) शुद्ध कर ॥३॥
Connotation: - वह परमात्मा पृथिवी आदि अनन्त लोकों का अद्वितीय सर्वोपरि शासक है, हे मनुष्यो ! उसीकी आज्ञा मानकर दुष्कर्मों को त्याग अपने को शुद्ध बनाओ ॥३॥
Footnote: ३−(त्वम्) (भूमिम्) (अति) अतीत्य (एषि) गच्छसि (ओजसा) पराक्रमेण (त्वम्) (वेद्याम्) यज्ञप्रदेशे (सीदसि) तिष्ठसि (चारुः) शोभायमानः (अध्वरे) हिंसारहिते यज्ञे (त्वाम्) (पवित्रम्) शुद्धम् (ऋषयः) तत्त्वदर्शिनः (अभरन्त) धारितवन्तः (त्वम्) (पुनीहि) शोधय (दुरितानि) महादुःखानि (अस्मत्) अस्मत्तः ॥