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स॑हस्रा॒र्घः श॒तका॑ण्डः॒ पय॑स्वान॒पाम॒ग्निर्वी॒रुधां॑ राज॒सूय॑म्। स नो॒ऽयं द॒र्भः परि॑ पातु वि॒श्वतो॑ दे॒वो म॒णिरायु॑षा॒ सं सृ॑जाति नः ॥

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Pad Path

सहस्रऽअर्घः। शतऽकाण्डः। पयस्वान्। अपाम्। अग्निः। वीरुधाम्। राजऽसूयम्। सः। नः। अयम्। दर्भः। परि। पातु। विश्वतः। देवः। मणिः। आयुषा। सम्। सृजाति। नः ॥३३.१॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:33» Paryayah:0» Mantra:1


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

उन्नति करने का उपदेश।

Word-Meaning: - (सहस्रार्घः) सहस्रों पूजावाला, (शतकाण्डः) सैकडों सहारे देनेवाला, (पयस्वान्) अन्नवाला, (अपाम्) जलों की (अग्निः) अग्नि [के समान व्यापक] (वीरुधाम्) ओषधियों के (राजसूयम्) राजसूय [बड़े यज्ञ के समान उपकारी] है। (सः अयम्) वही (दर्भः) दर्भ [शत्रुविदारक परमेश्वर] (नः) हमें (विश्वतः) सब ओर से (परि पातु) पालता रहे, (देवः) प्रकाशमान (मणिः) प्रशंसनीय [वह परमेश्वर] (नः) हमें (आयुषा) [उत्तम] जीवन के साथ (सं सृजाति) संयुक्त करे ॥१॥
Connotation: - जो जल के भीतर अग्नि के समान सर्वव्यापक परमेश्वर सृष्टि की अनेक प्रकार रक्षा करता है, मनुष्य उसकी भक्ति से प्रयत्नपूर्वक अपने जीवन को सुफल बनावें ॥१॥
Footnote: इस मन्त्र का तीसरा पाद आ चुका है-सू०३२ म०१०॥१−(सहस्रार्घः) अर्ह पूजायाम्-घञ्। बहुपूजनीयः (शतकाण्डः) उ०१९।३२।१। बहुरक्षणोपेतः (पयस्वान्) अन्नवान्-निघ०२।७ (अपाम्) जलानां मध्ये (अग्निः) अग्निसमानसर्वव्यापकः (वीरुधाम्) ओषधीनाम् (राजसूयम्) राजसूययज्ञसमानमहोपकारकः (देवः) प्रकाशमानः (मणिः) प्रशस्तः परमेश्वरः (आयुषा) उत्तमजीवनेन (सं सृजाति) संयोजयेत् (नः) अस्मान्। अन्यत् पूर्ववत्-अ०१९।३२।१०॥