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द॒र्भेण॑ दे॒वजा॑तेन दि॒वि ष्ट॒म्भेन॒ शश्व॒दित्। तेना॒हं शश्व॑तो॒ जनाँ॒ अस॑नं॒ सन॑वानि च ॥

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दर्भेण। देवऽजातेन। दिवि। स्तम्भेन। शश्वत्। इत्। तेन। अहम्। शश्वतः। जनान्। असनम्। सनवानि। च ॥३२.७॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:32» Paryayah:0» Mantra:7


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

शत्रुओं के हराने का उपदेश।

Word-Meaning: - (देवजातेन) विद्वानों में प्रसिद्ध, (दिवि) आकाश में (स्तम्भेन) स्तम्भरूप, (ते) उस (दर्भेण) दर्भ [शत्रुविदारक परमेश्वर] के साथ (शश्वत्) सदा (इत्) ही (अहम्) मैंने (शश्वतः) नित्य वर्तमान (जनान्) पामर लोगों को (असनम्) जीता है, (च) और (सनवानि) जीतूँ ॥७॥
Connotation: - जिस परमात्मा ने सूर्य आदि लोकों को नियम के साथ आकर्षण में रक्खा है, उसकी उपासना करके मनुष्य दुष्टों को दण्ड दे, शिष्टों का सत्कार करे ॥७॥
Footnote: ७−(दर्भेण) शत्रुविदारकेण परमेश्वरेण (देवजातेन) विद्वत्सु प्रसिद्धेन (दिवि) आकाशे (स्तम्भेन) स्तम्भरूपेण (शश्वत्) सर्वदा (इत्) एव (तेन) परमेश्वरेण (अहम्) (शश्वतः) नित्यवर्तमानान् (जनान्) पामरलोकान् (असनम्) षण संभक्तौ-लङ्। जितवानस्मि (सनवानि) षण-लोट्। जयानि (च) ॥