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दे॒वो म॒णिः स॑पत्न॒हा ध॑न॒सा धन॑सातये। प॒शोरन्न॑स्य भू॒मानं॒ गवां॑ स्फा॒तिं नि य॑च्छतु ॥

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देवः। मणिः। सपत्नऽहाः। धनऽसाः। धनऽसातये। पशोः। अन्नस्‍य। भूमानम्। गवाम्। स्फातिम्। नि। यच्छतु ॥३१.८॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:31» Paryayah:0» Mantra:8


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

Word-Meaning: - (देवः) प्रकाशमान (मणिः) प्रशंसनीय, (सपत्नहा) वैरियों का मारनेवाला, (धनसाः) धनों का देनेवाला [परमात्मा] (धनसातये) धनों के दान के लिये−(पशोः) प्राणियों की और (अन्नस्य) अन्न की (भूमानम्) बहुतायत और (गवाम्) गौओं की (स्फातिम्) बढ़ती (नि) नित्य (यच्छतु) देवे ॥८॥
Connotation: - जो मनुष्य परमात्मा के अनुग्रह से धनों को प्राप्त करके उत्तम रीति से उठाते हैं, वे सदा उन्नति करते हैं ॥८॥
Footnote: ८−(देवः) प्रकाशमयः (मणिः) प्रशंसनीयः (सपत्नहा) शत्रुनाशकः (धनसाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा०३।२।६७। षण सम्भक्तौ-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा०६।४।४१। इत्यात्वम्। धनानां साता दाता (धनसातये) धन+षण संभक्तौ-क्तिन्। जनसनखनां सञ्झलोः। पा०६।४।४२। इत्यात्वम्। धनानां दानाय (पशोः) बहुवचनस्यैकवचनम् पशूनाम् (भूमानम्) बहुत्वम् (गवाम्) धेनूनाम् (स्फातिम्) समृद्धिम् (नि) नित्यम् (यच्छतु) ददातु ॥