Go To Mantra

भि॒न्द्धि द॑र्भ स॒पत्ना॑नां॒ हृद॑यं द्विष॒तां म॑णे। उ॒द्यन्त्वच॑मिव॒ भूम्याः॒ शिर॑ ए॒षां वि पा॑तय ॥

Mantra Audio
Pad Path

भिन्द्धि। दर्भ। सऽपत्नानाम्। हृदयम्। द्विषताम्। मणे। उत्ऽयन्। त्वचम्ऽइव। भूम्याः। शिरः। एषाम्। वि। पातय ॥२८.४॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:28» Paryayah:0» Mantra:4


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (मणे) हे प्रशंसनीय (दर्भ) दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (सपत्नानाम्) वैरियों और (द्विषताम्) विरोधियों के (हृदयम्) हृदय को (भिन्द्धि) तोड़ दे। (उद्यन्) उठता हुआ तू, (भूम्याः) भूमि की (त्वचम् इव) त्वचा [तृण आदि] के समान (एषाम्) इन शत्रुओं का (शिरः) शिर (वि पातय) गिरा दे ॥४॥
Connotation: - पराक्रमी सेनापति शत्रुओं में फूट डालकर घास-फूँस के समान नाश करे ॥४॥
Footnote: ४−(भिन्द्धि) विदारय (दर्भ) हे शत्रुविदारक (सपत्नानाम्) शत्रूणाम् (हृदयम्) (द्विषताम्) वैरिणाम् (मणे) हे प्रशस्त (उद्यन्) ऊर्ध्वं गच्छन्। उन्नतः सन् (त्वचम्) उपरिदेशं तृणादिकम् (इव) यथा (भूम्याः) पृथिव्याः (शिरः) मस्तकम् (एषाम्) शत्रूणाम् (विपातय) विविधं पातय विनाशय ॥