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घ॒र्म इ॑वाभि॒तप॑न्दर्भ द्विष॒तो नि॒तप॑न्मणे। हृ॒दः स॒पत्ना॑नां भि॒न्द्धीन्द्र॑ इव विरु॒जन् ब॒लम् ॥

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घर्मःऽइव। अभिऽतपन्। दर्भ। द्विषतः। निऽतपन्। मणे। हृदः। सऽपत्नानाम्। भिन्ध्दि। इन्द्रःऽइव। विऽरुजन्। बलम् ॥२८.३॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:28» Paryayah:0» Mantra:3


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

Word-Meaning: - (मणे) हे प्रशंसनीय (दर्भ) दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (घर्मः इव) ग्रीष्म के समान (अभितपन्) सर्वथा तपता हुआ (द्विषतः) विरोधियों को (नितपन्) सन्ताप देता हुआ तू, (बलम्) हिंसक को (विरुजन्) नाश करते हुए (इन्द्रः इव) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष] के समान, (सपत्नानाम्) वैरियों के (हृदः) हृदयों को (भिन्द्धि) तोड़ दे ॥३॥
Connotation: - सेनापति महाप्रतापी शूरों के समान पराक्रम करके शत्रुओं को हरावे ॥३॥
Footnote: ३−(घर्मः) ग्रीष्म (इव) यथा (अभितपन्) अभितः सन्तापं कुर्वन् (दर्भ) हे शत्रुविदारक (द्विषतः) विरोधिनः पुरुषान् (नितपन्) सन्तापयन् (मणे) हे प्रशंसनीय (हृदः) हृदयानि (सपत्नानाम्) शत्रूणाम् (भिन्द्धि) विदारय (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (इव) यथा (विरुजन्) नाशयन् (बलम्) बल वधे-अच्। हिंसकं दैत्यम् ॥