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मा वः॑ प्रा॒णं मा वो॑ऽपा॒नं मा हरो॑ मा॒यिनो॑ दभन्। भ्रा॑जन्तो वि॒श्ववे॑दसो दे॒वा दैव्ये॑न धावत ॥

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मा। वः। प्राणम्। मा। वः। अपानम्। मा। हरः। मायिनः। दभन्। भ्राजन्तः। विश्वऽवेदसः। देवाः। दैव्येन। धावत ॥२७.६॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:27» Paryayah:0» Mantra:6


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

आशीर्वाद देने का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे मनुष्यो !] (मा) न तो (वः) तुम्हारे (प्राणम्) श्वास को, (मा) न (वः) तुम्हारे (अपानम्) प्रश्वास को, और (मा) न (हरः) तेज को (मायिनः) छली लोग (दभन्) नष्ट करें। (भ्राजन्तः) चमकते हुए, (विश्ववेदसः) सब प्रकार धनवाले, (देवाः) विद्वानो ! तुम (दैव्येन) विद्वानों के योग्य कर्म के साथ (धावत) धावा करो ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को विद्वानों के समान दूरदर्शी होकर शत्रु लोग रोकने चाहिएँ कि जिससे वे किसी प्रकार हानि न पहुँचावें ॥६॥
Footnote: ६−(मा) निषेधे (वः) युष्माकम् (प्राणम्) श्वासम् (मा) (वः) (अपानम्) प्रश्वासम् (हरः) तेजः (मायिनः) छलिनः (मा दभन्) मा नाशयन्तु (भ्राजन्तः) दीप्यमानाः (विश्ववेदसः) सर्वधनाः (देवाः) विद्वांसः (दैव्येन) देव-यञ्। विद्वद्योग्यकर्मणा (धावत) शीघ्रं गच्छत ॥