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घृ॒तेन॑ त्वा॒ समु॑क्षा॒म्यग्न॒ आज्ये॑न व॒र्धय॑न्। अ॒ग्नेश्च॒न्द्रस्य॒ सूर्य॑स्य॒ मा प्रा॒णं मा॒यिनो॑ दभन् ॥

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Pad Path

घृतेन। त्वा। सम्। उक्षामि। अग्ने। आज्येन। वर्धयन्। अग्नेः। चन्द्रस्य। सूर्यस्य। मा। प्राणम्। मायिनः। दभन् ॥२७.५॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:27» Paryayah:0» Mantra:5


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

आशीर्वाद देने का उपदेश।

Word-Meaning: - (अग्ने) हे अग्नि [ के समान तेजस्वी विद्वान् ! ] जैसे अग्नि | को ] (श्राज्येन) घृत से (वर्धयन्) बढ़ाता हुआ मैं (त्वा) तुझे (घृतेन) ज्ञान प्रकाश से (सम्) यथावत् (उक्षामि) बढ़ाता हूं । (अग्ने:) अग्नि के, (चन्द्रस्य) चन्द्रमा केऔर (सूर्यस्य) सूर्य के (प्राणम्) प्रारण [जीवन सामर्थ्य ] को (मायिनः) छली(मा दभन्) नहीं नाश करें ||५||
Connotation: - सब मनुष्य विद्या से पूर्ण होकर और अग्नि, चन्द्रमा और सूर्य आदि की जीवनशक्तियों से यथावत् उपकार लेकर शत्रुओं को वश में करें –॥५॥
Footnote: ५−(घृतेन) ज्ञानप्रकाशेन (त्वा) त्वाम् (सम्) सम्यक् (उक्षामि) उक्षण उक्षतेर्वृद्धिकर्मणः-निरु०१२।९। वर्धयमामि (अग्ने) हे अग्निवत्तेजस्विन् विद्वन् (आज्येन) सर्पिषा। होमद्रव्येण (वर्धयन्) प्रवृद्धं कुर्वन्-अग्निं यथा (अग्नेः) पावकस्य (चन्द्रस्य) चन्द्रलोकस्य (सूर्यस्य) भास्करस्य (प्राणम्) जीवनसामर्थ्यम् (मायिनः) छलिनः (मा दभन्) दम्भु दम्भे-लुङ्। मा हिंसन्तु नाशयन्तु ॥