Go To Mantra

आयु॑षे त्वा॒ वर्च॑से॒ त्वौज॑से च॒ बला॑य च। यथा॑ हिरण्य॒तेज॑सा वि॒भासा॑सि॒ जनाँ॒ अनु॑ ॥

Mantra Audio
Pad Path

आयुषे। त्वा। वर्चसा। त्वा। ओजसे। च। बलाय। च। यथा। हिरण्यऽतेजसा। विऽभासासि। जनान्। अनु ॥२६.३॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:26» Paryayah:0» Mantra:3


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सुवर्ण आदि धन की प्राप्ति का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (त्वा) तुझसे (आयुषे) जीवन के लिये और (वर्चसे) प्रताप के लिये (च) और (त्वा) तुझसे (बलाय) बल के लिये (च) और (ओजसे) पराक्रम के लिये [वह सोना संयोग करता है-म०२]। (यथा) जिससे कि (हिरण्यतेजसा) सुवर्ण के तेज से (जनान् अनु) मनुष्यों में (विभासासि) तू चमकता रहे ॥३॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि पुरुषार्थ से सुवर्ण आदि धन प्राप्त करके मनुष्यों में प्रतापी और यशस्वी होवें ॥३॥
Footnote: ३−(आयुषे) जीवनाय (त्वा) त्वाम्। तच्चन्द्रं संसृजतीत्यनुवर्तते-म०२। (वर्चसे) प्रतापाय (त्वा) (ओजसे) पराक्रमाय (बलाय) (यथा) येन प्रकारेण (हिरण्यतेजसा) सुवर्णस्य प्रतापेन (विभासासि) भस दीप्तौ-लेट् आडागमः। विशेषेण भासेथाः। दीप्यस्व (जनान्) मनुष्यान् (अनु) प्रति ॥