सुवर्ण आदि धन की प्राप्ति का उपदेश।
Word-Meaning: - (यत्) जो (हिरण्यम्) कमनीय सुवर्ण (अग्नेः परि) अग्नि से [पार्थिव अग्नि यद्वा पराक्रम रूप तेज से] (प्रजातम्) उत्पन्न हुआ है, (अमृतम्) [उस] मृत्यु से बचानेवाले [जीवन के साधन] को (मनुष्येषु) मनुष्यों में (अधि) अधिकारपूर्वक (दध्रे) मैंने धरा है। (यः) जो पुरुष (एनत्) इस [बात] को (वेद) जानता है, (सः) वह (इत्) ही (एनम्) इस [पदार्थ] के (अर्हति) योग्य होता है, और वह (जरामृत्युः) बुढ़ापे [निर्बलता] को मृत्युसमान [दुःखदायी] माननेवाला महाप्रबल (भवति) होता है, (यः) जो [सुवर्ण को] (बिभर्त्ति) धारण करता है ॥१॥
Connotation: - पृथिवी के साथ सूर्य की किरणों का संयोग होने से सोना उत्पन्न होता है और उसको ईश्वरनियम से मनुष्यों में पराक्रमी ही पाते हैं। मनुष्य इस सिद्धान्त को निश्चय जानकर विद्या द्वारा योग्य होकर सुवर्ण आदि धन प्राप्त करें ॥१॥