राजा के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे पुरुषार्थी !] (हिरण्यवर्णः) कमनीय वा तेजस्वी रूपवाला, (अजरः) फुरतीला [वा अनिर्बल] (सुवीरः) बड़े वीरोंवाला, (जरामृत्युः) बुढ़ापे [निर्बलता] को मृत्युसमान त्याज्य माननेवाला [महाबलवान्] तू (प्रजया) प्रजा के साथ (सम्) मिलकर (विशस्व) प्रवेश कर। (तत्) इस बात को (अग्निः) अग्नि [समान तेजस्वी पुरुष] (आह) कहता है, (तत् उ) उसको ही (सोमः) सोम [चन्द्रमा समान पोषक], (तत्) उसी को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी विद्याओं का स्वामी], (सविता) सबका प्रेरक, (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी पुरुष] (आह) कहता है ॥८॥
Connotation: - सब प्रतापी विद्वानों को यह सिद्धान्त मानना चाहिये कि पुरुषार्थी शूर पुरुष से मिलकर प्रजा की उन्नति करें ॥८॥