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परि॑ धत्त ध॒त्त नो॒ वर्च॑से॒मं ज॒रामृ॑त्युं कृणुत दी॒र्घमायुः॑। बृह॒स्पतिः॒ प्राय॑च्छ॒द्वास॑ ए॒तत्सोमा॑य॒ राज्ञे॒ परि॑धात॒वा उ॑ ॥

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Pad Path

परि। धत्त। धत्त। नः। वर्चसा। इमम्। जराऽमृत्युम्। कृणुत। दीर्घम्। आयुः। बृहस्पतिः। प्र। अयच्छत्। वासः। एतत्। सोमाय। राज्ञे। परिऽधातवै। ऊं इति ॥२४.४॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:24» Paryayah:0» Mantra:4


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे विद्वानो !] (नः) हमारे लिये (इमम्) इस [पराक्रमी] को (परि धत्त) [वस्त्र] पहिराओ और (वर्चसा) तेज के साथ (धत्त) पुष्ट करो और (जरामृत्युम्) बुढ़ापे [अर्थात् निर्बलता] को मृत्यु समान त्याज्य माननेवाला [अथवा स्तुति के साथ मृत्युवाला] (दीर्घम्) बड़ी (आयुः) आयु (कृणुत) करो। (बृहस्पति) बृहस्पति [बड़े-बड़े विद्वानों के रक्षक पुरोहित] ने (एतत्) यह (वासः) वस्त्र (सोमाय) सूर्यसमान (राज्ञे) राजा को (उ) ही (परिधातवे) धारण करने के लिये (प्र अयच्छत्) दिया है ॥४॥
Connotation: - सुनीतिज्ञ पुरुष को मनुष्य वस्त्र आदि पहिनाकर राजसिंहासन पर सुशोभित करें और सब विद्वान लोग प्रतिष्ठा के साथ उसे राज्य करने के लिये उत्साह देवें ॥४॥
Footnote: यह मन्त्र आ चुका है-अथर्व०२।१३।२॥४−(जरामृत्युम्) जरा निर्बलता मृत्युर्दुःखमिव त्याज्यं यस्य तम्। यद्वा जरया स्तुत्या मरणयुक्तम् (सोमाय) सोमः सूर्यः प्रसवनात्-निरु०१४।१२। अन्यद् व्याख्यातम्-म०२।१३।२