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प्र वाए॒तीन्दु॒रिन्द्र॑स्य॒ निष्कृ॑तिं॒ सखा॒ सख्यु॒र्न प्र मि॑नाति संगि॒रः। मर्य॑इव॒ योषाः॒ सम॑र्षसे॒ सोमः॑ क॒लशे॑ श॒तया॑मना प॒था ॥

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Pad Path

प्र । वै । एति । इन्दु: । इन्द्रस्य । नि:ऽकृतिम् । सखा । सख्यु: । न । प्र । मिनाति । सम्ऽगिर: । मर्य:ऽइव । योषा: । सम् । अर्षसे । सोम: । कलशे । शतऽयामना । पथा ॥४.६०॥

Atharvaveda » Kand:18» Sukta:4» Paryayah:0» Mantra:60


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

ईश्वर की उपासना का उपदेश।

Word-Meaning: - (इन्दुः) ऐश्वर्यवान्जीवात्मा (इन्द्रस्य) परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर की (निष्कृतिम्) निस्तार शक्तिको (वै) निश्चय करके (प्र) आगे को (एति) पाता जाता है, (सखा) सखा [परमात्मा कामित्र जीव] (सख्युः) सखा [अपने मित्र जगदीश्वर] की (संगिरः) उचित वाणियों को (न)नहीं (प्र मिनाति) तोड़ देता है। (मर्यः इव) जैसे मनुष्य (योषाः) अपनी स्त्री को [प्रीति से वैसे] (सोमः) प्रेरक आत्मा तू (कलशे) कलस [घटरूप हृदय] के भीतर (शतयामना) सैकड़ों गतिवाले (पथा) मार्ग से [परमात्मा को] (सम्) यथाविधि (अर्षसे)प्राप्त होता है ॥६०॥
Connotation: - जो मनुष्य परमात्मा कीआज्ञाओं का पालन करता है, वही पापों से छूटकर मोक्षसुख भोगता है, और जैसेस्त्री-पुरुष गृहाश्रम की सिद्धि के लिये परस्पर हार्दिक प्रीति करते हैं, वैसेही योगी पुरुष अनेक प्रकार से अपने हृदय में परमात्मा का दर्शन करके उसके साथप्रीति में मग्न हो जाता है ॥६०॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−९।८६।१६ औरसामवेद में है−पू० ६।७।४ तथा उ० ४।२।७ ॥
Footnote: ६०−(प्र) प्रकर्षेण (वै) निश्चयेन (एति)प्राप्नोति (इन्दुः) ऐश्वर्यवान् जीवात्मा (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतःपरमेश्वरस्य (निष्कृतिम्) निस्तारशक्तिम्। निर्मुक्तिम् (सखा) सुहृद्वज्जीवात्मा (सख्युः) सर्वमित्रस्य परमात्मनः (न) निषेधे (प्र) (मिनाति) मीञ् हिंसायाम्।मीनातेर्निगमे। पा० ७।३।८१। इति ह्रस्वत्वम्। हिनस्ति (संगिरः) गॄविज्ञापने-क्विप्। संगरान्। समीचीनवचननानि (मर्यः) मनुष्यः (इव) यथा (योषाः) सुपांसुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। एकवचनस्य बहुवचनम्। योषाम्। सेवनीयां स्त्रियम् (सम्) सम्यक् (अर्षसे) ऋषी गतौ, भौवादिकः। प्राप्नोषि (सोमः) सोमः सूर्यःप्रसवनात्, सोम आत्माऽप्येतस्मादेव-निरु० १४।१२। प्रेरको जीवात्मा (कलशे) घटरूपेहृदये (शतयामना) अल्लोपोऽनः। पा० ६।४।१३४। इति प्राप्तस्यअकारलोपस्याभावश्छान्दसः। शतयाम्ना। बहुगतियुक्तेन (पथा) मार्गेण ॥