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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ईश्वर की उपासना का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे परमात्मन् !] (ते)तेरा (सन्) श्रेष्ठ, (शुक्रः) निर्मल (आततः) सब ओर फैला हुआ (त्वेषः) प्रकाश [हमको] (दिवि) आकाश में (धूमः) भाप [जैसे, वैसे] (ऊर्णोतु) ढक लेवे। (पावक) हे शोधक ! [परमेश्वर] (सूरःन) जैसे सूर्य (द्युता) अपने प्रकाश से [वैसे] (त्वम्) तू (हि)ही (कृपा) अपनी कृपा से (रोचसे) चमकता है ॥५९॥
Connotation: - जैसे मेघ के कण आकाशमें व्यापक रहते हैं, वैसे ही परमात्मा को हम लोग सर्वत्र व्यापक साक्षात् करें, वह कृपालु जगदीश्वर सूर्यसमान सब में प्रकाशमान है ॥५९॥यह मन्त्र कुछ भेद सेऋग्वेद में है−६।२।६। और सामवेद में पू० १।९।३ ॥
Footnote: ५९−(त्वेषः) त्विषदीप्तौ-पचाद्यच्। प्रकाशः (ते) तव (धूमः) वाष्पो यथा (ऊर्णोतु) आच्छादयतु (दिवि)आकाशे (सन्) श्रेष्ठः (शुक्रः) शुक्लः। शुद्धः (आततः) समन्ताद् विस्तीर्णः (सूरः) प्रेरकः सूर्यः (न) यथा (हि) निश्चयेन (द्युता) दीप्त्या (त्वम्) (कृपा)कृपू सामर्थ्ये-क्विप्। कृपया। दयया (पावक) हे शोधक परमात्मन् (रोचसे) दीप्यसे ॥