Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
मनुष्य को वृद्धि करने का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (इदम्)इस (हिरण्यम्) सुवर्ण को (बिभृहि) तू धारण कर, (यत्) जैसे (ते) तेरे (पिता) पिताने (पुरा) पहिले (अबिभः) धारण किया है। और (स्वर्गम्) सुख देनेवाले पद को (यतः)प्राप्त होते हुए (पितुः) पिता के (दक्षिणम्) दाहिने [वा उदार और कार्यकुशल] (हस्तम्) हाथ को (नि) निश्चय करके (मृड्ढि) शोभायमन कर ॥५६॥
Connotation: - मनुष्य बड़े पुरुषोंके समान सुवर्ण आदि धन प्राप्त करें और उपकारी कार्यों में चतुर होने के लियेयुवराज बनकर बड़े लोगों का हाथ बटावें अर्थात् सहाय करें ॥५६॥
Footnote: ५६−(इदम्)उपस्थितम् (हिरण्यम्) सुवर्णम् (बिभृहि) धारय (यत्) यथा (ते) तव (पिता) जनकः (अबिभः) भृतवान्। धारितवान् (पुरा) पूर्वम् (स्वर्गम्) सुखप्रापकं पदम् (यतः) इण्गतौ-शतृ। गच्छतः। प्राप्नुवतः (पितुः) जनकस्य (हस्तम्) करम् (निः) निश्चयेन (मृड्ढि) अ० ११।१।२९। मृजू शौचालङ्कारयोः-लोट्, अदादिः। मार्जय। अलङ्कुरु (दक्षिणम्) असव्यम्। उदारम्। कार्यकुशलम् ॥