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ऊ॒र्जो भा॒गो यइ॒मं ज॒जानाश्मान्ना॑ना॒माधि॑पत्यं ज॒गाम॑। तम॑र्चत वि॒श्वमि॑त्रा ह॒विर्भिः॒ सनो॑ य॒मः प्र॑त॒रं जी॒वसे॑ धात् ॥

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Pad Path

ऊर्ज: । भाग: । य: । इमम् । जजान । अश्मा । अन्नानाम् । आधिऽपत्यम् । जगाम । तम् । अर्चत । विश्वऽमित्रा: । हवि:ऽभि: । स: । न:। यम: । प्रऽतरम् । जीवसे । धात् ॥४.५४॥

Atharvaveda » Kand:18» Sukta:4» Paryayah:0» Mantra:54


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमात्मा की भक्ति के फल का उपदेश।

Word-Meaning: - (ऊर्जः) पराक्रम के (यः) जिस (भागः) भाग करनेवाले [परमेश्वर] ने (इमम्) इस [संसार] को (जजान)उत्पन्न किया है और (अश्मा) व्यापक होकर (अन्नानाम्) अन्नों का (आधिपत्यम्)स्वामिपन (जगाम) पाया है। (तम्) उस [परमात्मा] को (विश्वमित्राः) सबके मित्र तुम (हविर्भिः) आत्मदानों से (अर्चत) पूजो, (सः) वह (यमः) न्यायकारी परमेश्वर (नः)हमें (प्रतरम्) अधिक उत्तमता से (जीवसे) जीने के लिये (धात्) धारणकरे ॥५४॥
Connotation: - जगत्स्रष्टा परमेश्वरसब प्राणियों को उन के पुरुषार्थ के अनुसार सामर्थ्य देकर अन्न आदि देता है, इसलिये मनुष्य अधिक-अधिक पुरुषार्थ करके अपने जीवन को अधिक-अधिक ऊँचा बनावें॥५४॥इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध ऊपर आ चुका है-अ० १८।३।६३ ॥
Footnote: ५४−(ऊर्जः) ऊर्जबलप्राणनयोः-क्विप्। पराक्रमस्य (भागः) संभक्ता (यः) परमेश्वरः (इमम्) दृश्यमानंसंसारम् (जजान) जनयामास (अश्मा) अशू व्याप्तौ-मनिन्। व्यापकः परमात्मा (अन्नानाम्) भोजनानाम् (आधिपत्यम्) स्वामित्वम् (जगाम) प्राप। अन्यत्पूर्ववत्-अ० १८।३।६३ ॥