Word-Meaning: - (सहस्रधारम्) सहस्रोंप्रकार से पोषण करनेवाले, (शतधारम्) दूध की सैकड़ों धाराओंवाले, (अक्षितम्) नघटनेवाले, (सलिलस्य) समुद्र की (पृष्ठे) पीठपर (व्यच्यमानम्) फैले हुए [अर्थात्जलसमान बहुत होनेवाले], (ऊर्जम्) बलकारक रस [दूध घी आदि] (दुहानम्) देनेवाले (अनपस्फुरन्तम्) कभी न चलायमान होनेवाले (उत्सम्) स्रोते [अर्थात् गौ रूपपदार्थ] को (पितरः) पितर [पिता आदि मान्य] लोग (स्वधाभिः) आत्मधारण शक्तियों केसाथ (उप आसते) सेवते हैं ॥३६॥
Connotation: - जो मनुष्य अपनाशारीरिक और आत्मिक बल बढ़ाना चाहें, वे गौ की रक्षा करके दूध, घी आदि का सेवनकरें ॥३६॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध कुछ भेद से यजुर्वेद में है−१३।४९ औरउत्तरार्द्ध के लिये-मन्त्र ३० ऊपर देखो ॥