Word-Meaning: - (कोशम्) भण्डारतुल्य, (चतुर्बिलम्) चार छेद [स्तन] वाले (कलशम्) कलश [गौ के लेवा] को (इडाम्) स्तुतियोग्य, (मधुमतीम्) मधुर रस [मीठे दूध] वाली (धेनुम्) दुधैल गौ से (स्वस्तये)आनन्द के लिये (दुहन्ति) [मनुष्य] दुहते हैं। (अग्ने) हे ज्ञानी राजन् ! (परमे)सर्वोत्कृष्ट (व्योमन्) सर्वत्र व्यापक परमात्मा में [वर्तमान तू] (जनेषु)मनुष्यों के बीच (ऊर्जम्) बलदायक रस (मदन्तीम्) बढ़ाती हुई (अदितिम्) अदीन [औरअखण्डनीय] गौ को (मा हिंसीः) मतमार ॥३०॥
Connotation: - राजा ऐसा प्रबन्ध करेकि गौ आदि पशु, जो दूध घी आदि उत्तम पदार्थ देने में दीन नहीं होते और उनके बच्चेबैल आदि जो खेती आदि में उपकार करते हैं, जिस से प्रजा की रक्षा होती है, उन सबकोकोई मनुष्य कभी न सतावे और न मारे ॥३०॥इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध कुछ भेद से यजुर्वेदमें है−१३।४९, और पूर्वार्द्ध के लिये मन्त्र ३६ आगे देखो ॥