Go To Mantra

द्र॒प्सश्च॑स्कन्द पृथि॒वीमनु॒ द्यामि॒मं च॒ योनि॒मनु॒ यश्च॒ पूर्वः॑। स॑मा॒नंयोनि॒मनु॑ सं॒चर॑न्तं द्र॒प्सं जु॑हो॒म्यनु॑ स॒प्त होत्राः॑ ॥

Mantra Audio
Pad Path

द्रप्स: । चस्कन्द: । पृथिवीम् । अनु । द्याम् । इमम् । च । योनिम् । अनु । य: । च । पूर्व: । समानम् । योनिम् । अनु । सम्ऽचरन्तम् । द्रप्सम् । जुहोमि । अनु । सप्त । होत्रा: ॥४.२८॥

Atharvaveda » Kand:18» Sukta:4» Paryayah:0» Mantra:28


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

Word-Meaning: - (द्रप्सः) हर्षकारकपरमात्मा (पृथिवीम्) पृथिवी और (द्याम् अनु) प्रकाश में (च) और (इमम्) इस(योनिम् अनु) घर [शरीर] में (च) और [उस शरीर में भी] (चस्कन्द) व्यापक है (यः)जो [शरीर] (पूर्वः) पहिला है। (समानम्) समान [सर्वसाधारण] (योनिम् अनु) कारण में (संचरन्तम्) विचरते हुए (द्रप्सम्) हर्षकारक परमात्मा को (सप्त) सात [मस्तक केसात गोलक] (होत्राः अनु) विषय ग्रहण करनेवाली शक्तियों के साथ (जुहोमि) मैंग्रहण करता हूँ ॥२८॥
Connotation: - जो परमेश्वर अन्धकारऔर प्रकाश में, हमारे वर्तमान और पूर्व शरीर में और प्रत्येक सर्वसाधारण कारणमें व्यापक है, सब मनुष्य योगाभ्यास से इन्द्रियों को वश में करके उस जगदीश्वरकी भक्ति करें ॥२८॥अथर्ववेद काण्ड १०।२।६ में आया है−“कर्ता [परमेश्वर] ने [मनुष्य के] मस्तक में सात गोलक खोदे, यह दोनों कान, दोनों नथने, दोनों आँखें औरएक मुख। जिन के विजय की महिमा में चौपाये और दोपाये जीव अनेक प्रकार से मार्गचलते हैं ॥यह मन्त्र अभेद से यजुर्वेद में है−१३।५, और कुछ भेद से ऋग्वेद मेंहै−१०।१७।११ ॥
Footnote: २८−(द्रप्सः) अ० १८।१।२१। दृप हर्षमोहनयोः। हर्षकारी परमात्मा (चस्कन्द) स्कन्दिर् गतिशोषणयोः लिट्। स्कन्दति। गच्छति। व्याप्नोति (पृथिवीम्) (अनु) प्रति (द्याम्) प्रकाशम् (इमम्) दृश्यमानम् (च) (योनिम्) गृहम्। शरीरम् (अनु) प्रति (यः) योनिः। शरीरम् (च) (पूर्वः) पूर्वमुत्पन्नः (समानम्) तुल्यम्।सर्वसाधारणम् (योनिम्) कारणम् (अनु) प्रति (संचरन्तम्) विचरन्तम् (द्रप्सम्)हर्षकारकं परमात्मानम् (जुहोमि) आदत्ते। गृह्णामि (अनु) अनुसृत्य (होत्राः)हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। हु दानादानादनेषु−त्रन्, टाप्। होत्रावाङ्नाम-निघ० १।११। शीर्षण्यच्छिद्ररूपा विषयग्रहीत्रीः शक्तीः ॥