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अ॑पू॒पापि॑हितान्कु॒म्भान्यांस्ते॑ दे॒वा अधा॑रयन्। ते ते॑ सन्तु स्व॒धाव॑न्तो॒मधु॑मन्तो घृत॒श्चुतः॑ ॥

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अपूपऽअपिहितान् । कुम्भान् । यान् । ते । देवा: । अधारयन् । ते । ते । सन्तु । स्वधाऽवन्त: । मधुऽमन्त: । घृतऽश्चुत: ॥४.२५॥

Atharvaveda » Kand:18» Sukta:4» Paryayah:0» Mantra:25


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

यजमान के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (यान्)जिन (अपूपापिहितान्) अपूपों [शुद्ध पके हुए भोजनों मालपूए पूड़ी आदि] को ढककररखनेवाले (कुम्भान्) पात्रों को (ते) तेरे लिये (देवाः) विद्वानों ने (अधारयन्)रक्खा है। (ते) वे [भोजन पदार्थ] (ते) तेरे लिये (स्वधावन्तः) आत्मधारणशक्तिवाले, (मधुमन्तः) मधुर गुणवाले और (घृतश्चुतः) घी [सार रस] के सींचनेवाले (सन्तु) होवें ॥२५॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये किसुन्दर पौष्टिक पदार्थों से यज्ञ करें, जिससे वायुमण्डल शुद्ध होने पर उत्तमबलदायक अन्न आदि पदार्थ उत्पन्न होवें ॥२५॥यह मन्त्र आ चुका है-अ० १८।३।६८॥
Footnote: २५−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० १८।३।६८ ॥